Saturday, May 28, 2011

Legal Info : - F.I.R. (एफआईआर )

करोलबाग में रहने वाले अपूर्व अग्रवाल को फेज रोड पहुंचने पर पता चला कि उनकी जेब से मोबाइल फोन गायब है। फौरन बस से उतरकर उन्होंने पीसीओ से अपने नंबर को डायलकिया। एक - दो बार घंटी जाने के बाद मोबाइल बंद हो गया। मोबाइल फोन चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए वह करोलबाग पुलिस स्टेशन पहुंचे , लेकिन ड्यूटी पर तैनात पुलिसअफसर ने उन्हें पहाड़गंज थाने जाने के लिए कहा। पहाड़गंज पुलिस स्टेशन से उन्हें फिर करोलबाग पुलिस स्टेशन भेज दिया। दोनों पुलिस स्टेशन के अधिकारी घटना स्थल को अपनेअधिकार क्षेत्र से बाहर होने की बात कहकर उन्हें घंटों परेशान करते रहे। थक - हारकर उन्होंने झूठ का सहारा लिया और पुलिस को बताया कि मोबाइल करोलबाग में चोरी हुआ है। तबजाकर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। 

पुलिस अधिकारियों को जनता से शिष्टतापूर्वक व्यवहार करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। अगर पुलिस एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करे , दुर्व्यवहार करे , रिश्वत मांगे याबेवजह परेशान करे , तो इसकी शिकायत जरूर करें। 

क्या है एफआईआर 

किसी अपराध की सूचना जब किसी पुलिस ऑफिसर को दी जाती है तो उसे एफआईआर कहते हैं। यह सूचना लिखित में होनी चाहिए या फिर इसे लिखित में परिवतिर्त किया गया हो।एफआईआर भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुरूप चलती है। एफआईआर संज्ञेय अपराधों में होती है। अपराध संज्ञेय नहीं है तो एफआईआर नहीं लिखी जाती। 

आपके अधिकार 

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अगर संज्ञेय अपराध है तो थानाध्यक्ष को तुरंत प्रथम सूचना रिपोर्ट ( एफआईआर ) दर्ज करनी चाहिए। एफआईआर की एक कॉपी लेना शिकायत करने वाले का अधिकार है। 

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एफआईआर दर्ज करते वक्त पुलिस अधिकारी अपनी तरफ से कोई टिप्पणी नहीं लिख सकता ,  ही किसी भाग को हाईलाइट कर सकता है। 

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संज्ञेय अपराध की स्थिति में सूचना दर्ज करने के बाद पुलिस अधिकारी को चाहिए कि वह संबंधित व्यक्ति को उस सूचना को पढ़कर सुनाए और लिखित सूचना पर उसके साइनकराए। 

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एफआईआर की कॉपी पर पुलिस स्टेशन की मोहर  पुलिस अधिकारी के साइन होने चाहिए। साथ ही पुलिस अधिकारी अपने रजिस्टर में यह भी दर्ज करेगा कि सूचना की कॉपीआपको दे दी गई है। 

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अगर आपने संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को लिखित रूप से दी है , तो पुलिस को एफआईआर के साथ आपकी शिकायत की कॉपी लगाना जरूरी है। 

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एफआईआर दर्ज कराने के लिए यह जरूरी नहीं है कि शिकायत करने वाले को अपराध की व्यक्तिगत जानकारी हो या उसने अपराध होते हुए देखा हो। 

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अगर किसी वजह से आप घटना की तुरंत सूचना पुलिस को नहीं दे पाएं , तो घबराएं नहीं। ऐसी स्थिति में आपको सिर्फ देरी की वजह बतानी होगी। 

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कई बार पुलिस एफआईआर दर्ज करने से पहले ही मामले की जांच - पड़ताल शुरू कर देती है , जबकि होना यह चाहिए कि पहले एफआईआर दर्ज हो और फिर जांच - पड़ताल। 

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घटना स्थल पर एफआईआर दर्ज कराने की स्थिति में अगर आप एफआईआर की कॉपी नहीं ले पाते हैं , तो पुलिस आपको एफआईआर की कॉपी डाक से भेजेगी। 

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आपकी एफआईआर पर क्या कार्रवाई हुई , इस बारे में संबंधित पुलिस आपको डाक से सूचित करेगी। 

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अगर थानाध्यक्ष सूचना दर्ज करने से मना करता है , तो सूचना देने वाला व्यक्ति उस सूचना को रजिस्टर्ड डाक द्वारा या मिलकर क्षेत्रीय पुलिस उपायुक्त को दे सकता है , जिस परउपायुक्त उचित कार्रवाई कर सकता है। 

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एएफआईआर  लिखे जाने की हालत में आप अपने एरिया मैजिस्ट्रेट के पास पुलिस को दिशा - निर्देश देने के लिए कंप्लेंट पिटिशन दायर कर सकते हैं कि 24 घंटे के अंदर केस दर्जकर एफआईआर की कॉपी उपलब्ध कराई जाए। 

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अगर अदालत द्वारा दिए गए समय में पुलिस अधिकारी शिकायत दर्ज नहीं करता या इसकी प्रति आपको उपलब्ध नहीं कराता या अदालत के दूसरे आदेशों का पालन नहीं करता , तोउस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के साथ उसे जेल भी हो सकती है। 

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अगर सूचना देने वाला व्यक्ति पक्के तौर पर यह नहीं बता सकता कि अपराध किस जगह हुआ तो पुलिस अधिकारी इस जानकारी के लिए प्रश्न पूछ सकता है और फिर निर्णय परपहुंच सकता है। इसके बाद तुरंत एफआईआर दर्ज कर वह उसे संबंधित थाने को भेज देगा। इसकी सूचना उस व्यक्ति को देने के साथ - साथ रोजनामचे में भी दर्ज की जाएगी। 

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अगर शिकायत करने वाले को घटना की जगह नहीं पता है और पूछताछ के बावजूद भी पुलिस उस जगह को तय नहीं कर पाती है तो भी वह तुरंत एफआईआर दर्ज कर जांच -पड़ताल शुरू कर देगा। अगर जांच के दौरान यह तय हो जाता है कि घटना किस थाना क्षेत्र में घटी , तो केस उस थाने को ट्रांसफर हो जाएगा। 

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अगर एफआईआर कराने वाले व्यक्ति की केस की जांच - पड़ताल के दौरान मौत हो जाती है , तो इस एफआईआर को Dying Declaration की तरह अदालत में पेश किया जा सकताहै। 

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अगर शिकायत में किसी असंज्ञेय अपराध का पता चलता है तो उसे रोजनामचे में दर्ज करना जरूरी है। इसकी भी कॉपी शिकायतकर्ता को जरूर लेनी चाहिए। इसके बाद मैजिस्ट्रेट सेसीआरपीसी की धारा 155 के तहत उचित आदेश के लिए संपर्क किया जा सकता है। 

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